बारिश की बूँदों सा मीठा, प्यार था उसका
सावन के झूलों सा,इठलाता अन्दाज़ था उसका
ख़ूबसूरती से भी ज़्यादा ख़ूबसूरत साथ था उसका
पल दो पल में ले गई क़िस्मत
छुड़ा कर हाथ फ़िर उसका
सिसक रही हूँ ,तड़प रही हूँ तबसे
खोया पहला प्यार है जब से
ढूँढा कतरा कतरा आसमाँ सबमें
ज़मी भी ना दी हमें, किसी ने दो पग की
साथ देना तो छोड़ ,नुमाईश भी ना की किसी ने अपनेपन की
पाने को प्यार ,तड़प तड़प कर ,दर दर भटकती रही
ढूँढने को दरिया मायूसी के रेगिस्तान में
न जाने उलझ गए काँटे कितने ही,
कदमों में
ख़ून रिसता रहा आँखों से
ना था पोंछने वाला कोई
मरघट के जैसा मेरी ज़िंदगी का सन्नाटा
दूर तक बाँहें पसार ,करता रहा मेरे ज़ख्मों में इज़ाफ़ा
अब दुआ आखिरी ,माँगी है बस, एक ज़रा सी
भेज दे ख़ुदा , मुझे बुलाने को लिफ़ाफ़ा ज़मी पे।
स्व रचित
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One Comment on “स्वाति गर्ग। (विधा : कविता) (मेरा पहला प्यार | सम्मान पत्र)”
बहुत ही खूबसूरत रचना ❤