उमड़ते हुए बस जज़्बात है ये
जब कहनी हो किसी से मन की बात
हो कोई भी बोली या कोई ज़ुबान
हर किसी के नसीब में है ये सौग़ात
भाषा अपनी वही जो प्रीत सिखाए
रूठे हुए दिलों को जो फिर से मिलाए
तो क्या जो ना तू समझे ना मैं समझूँ
फिर भी प्रेम के सदा ये दीप जलाए
प्रेमी जाने है आँखों की ज़ुबान
और नवोत्पन्न समझे बस माँ का स्पर्श
बेज़ुबान की फिर वही ज़मीं
और वो ही है उसका अपना अर्श
इंसान को बाँटे ग़र सोच कभी
या मज़हब खींचता दरमियाँ कोई लकीर
मीठी बोली बन मरहम भर दे ज़ख़्म
हो वो इँसा या हो कोई फ़क़ीर
अशांत सा हो जब सगरा माहौल
बोल दे तू इंसानियत की ज़ुबान
भुला कर दुःख और द्वेष सभी
भर ले फिर तू उम्मीद की उड़ान
भाषा विचारों का अनमोल ख़ज़ाना
और तहज़ीब से लेकर आन और शान
हो चाहे बोलियाँ सबकी अलग अलग
पर ये ही हैं इंसान की असली पहचान
निशा टंडन
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.