श्वेता प्रकाश कुकरेजा । (विधा : लघुकथा) (ग्रहण | सम्मान पत्र)
आज सिम्मी बारह साल की हो गयी…..वक़्त कैसे गुज़ार गया समझ ही नही आया….कोरोना संकट ने उससे उसकी बहन शिखा और सिम्मी से उसकी माँ
आज सिम्मी बारह साल की हो गयी…..वक़्त कैसे गुज़ार गया समझ ही नही आया….कोरोना संकट ने उससे उसकी बहन शिखा और सिम्मी से उसकी माँ
“मुझे बताओ जरा सूर्य ग्रहण कैसे पड़ता है?” सुधा ने अपने पति कमल से पूछा। “चंद्रमा जब पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता
तुम्हारे और मेरे बीच की चुप्पी भी तो ग्रहण ही है ना ……….?? सुनो ………क्या यही सच है ???? देखो ….ना …क्या यह भी ग्रहण
शीर्षक: थर्डजेंडर-प्रकृति का ग्रहण प्रकृति की रचना पर ग्रहण तो पहले से ही लगा था , जब खुदा ने जमीं पर भेजा था ना अपने
सिमरन अपने आप को आईने में निहार रही थी..आज तो बहुत खूबसूरत लग रही थी वो। सच में,कितना खुश होगा राजेश उसे देखकर!मन ही मन
नववधू बनकर खड़ी हूं आज नए आंगन में जाने कैसी उथल पुथल मची है मन में जानती हूं मीन मेख भरी नजरें मुझे परखेगी और
कविता का नाम: मेहंदी का रंग। बात जब बाबुल का घर छोड़ने की आयी, नाम पिया का ले, मेहंदी उसने लगाई। किए उसने वह सारे
शिवी खुद को आईने में निहार रही थी कि तभी बड़ी बुआ आ गयी,”शुकर है भगवान को ई मॉडी (बेटी)को ब्याओ हो राओ है…नाइ तो
माँ!! क्यों प्रिया के साथ जबरदस्ती मेरी भी शादी करने पर तुली हो ! मुझे पढ़ने दो,, अगर नौकरी लग गई तो अपने आप अच्छे
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