धरती यही तो है हम सबकी
माँ !
इस जेसा कहाँ दूसरा !
इसकी पनाह मै !
दुिनया पलती है !
जो पल पल रंग बदलती है !
धरती माँ ने अपने सीने मे !
िकतने ही राज दबा रखे है !
फिर भी इनकी आँखो से !
झर झर आंसू नहीं बहते हैँ !
क्योंकि यह मूक होकर!
सबका दुख सह जाती है !
फिर भी अपने काँधों पर
फिर भी अपने काँधों पर !
दुनिया का बोझ उठाती है !
नीना राजपाल
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