सोनिया सेठी (UBI इंद्रधनुष प्रतियोगिता | वरिष्ठ कवि )
इतने गौर से क्या देख रही हो? माँ, वो देखो ना कितना सुंदर है। गगनचुंबी इमारतों के बीच से झांकता, सतरंगी सपना, वो इंद्रधनुष है।
इतने गौर से क्या देख रही हो? माँ, वो देखो ना कितना सुंदर है। गगनचुंबी इमारतों के बीच से झांकता, सतरंगी सपना, वो इंद्रधनुष है।
आकाश पर उभरा इंद्र का धनुष, मन को धड़काता इंद्रधनुष, सात रंगों की सतरंगी बहार, मन को लुभाये इसका संसार, वर्षा के बाद का
एक अकेला पुष्प वाटिका की, शोभा नहीं बन पाता है । बाग अगर फूलो से भरा हो, तभी चमन कहलाता है । वैसे हर रंग
कैसा है ये अद्भुत मिलन!!!! वर्षा की बूंदों और सूर्य की रश्मियों का समागम, करता इंद्रधनुषी आभा का सृजन नभ के पटल पर दृष्टिगोचर होता
इन्द्र ने सतरंगी धनुष उठा कर बादलों संग नया खेल खेला है देखो कैसा है मौसम रंगीन और अलबेला है धूप बारिश के मिलन
” नेमत हो गर खुदा की तो इंद्रधनुषी रंग सिर्फ आसमान में ही नहीं, दिल पर भी बिखरा करते है। “ यह कहानी एक
आज सुबह से ही मौमम सुहाना बना हुआ है नीला आसमान काली चादर ओढे हुए है बिजली का कडकना रोमाचिंत कर रहा है। मेघों के
बेरुखी के बादल जब उमड़ घुमड कर आते है जज्बातों की बूंदों से मन को भीगो कर जाते हैं भीग जाती है पलकें सब धुँआ
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