रूपा आईने के सामने बैठकर अपने बाल बना रही थी.. मगर उसका ध्यान कहीं और था,उसके मन में गदर मचा हुआ था।वो एक बड़ी समस्या से गुजर रही थी। आज एक हफ्ता हुआ था उसकी शादी हुए, पर वो शैलेश को अब तक अपना नहीं पा रही थी।उसे, उसके पती होने का हक्क नहीं दे पा रही थी।शैलेश ने उसे कहा था,”कोई बात नहीं रुपा, तुम क्यों डर रही हो.. मुझे कोई जल्दी नहीं है!तुम्हारी रजामंदी मेरे लिए ज्यादा जरूरी है।” कितना अच्छा पती मिला था उसे।
लेकिन रूपा का मन घबरा रहा था। क्या उसका ये डर खत्म होगा?क्या वो शैलेश को अपना पाएगी?? जब भी शैलेश उसके नजदीक आने की कोशिश करता, रूपा के रोंगटे खड़े हो जाते और उसके सारे पुराने जख्म ताजा हो जाते!
रूपा १२..१३ साल की थी, तब वह ८ वी कक्षा में पढ़ती थी। अपनी पाठशाला की बास्केट बॉल टीम की कैप्टन थी। एक दिन उसके खेल प्रषिक्षक, खेल का सामान लाने के बहाने उसे भंडार कक्ष में ले गए। और आगे उसके साथ जो हुआ…उससे उसकी पूरी जिंदगी बदल गई। वो इतनी डर गई कि अपने माता पिता से भी कुछ दिनों तक कुछ नहीं बोल पाई। फिर जब उसने सब बताया तो…,”अब कुछ नहीं हो सकता! कोई हमारा विश्वास नहीं करेगा।हमारी केवल बदनामी होगी।”..उसके पापा ने कहा था। माँ की बात उसे आज भी याद थी,” मेरी बेटी को ग्रहण लग गया!!”
अभी भी रूपा अपने ही विचारों के चक्र में फसी थी…”तब तो मैं कुछ भी सुनने समझने की परिस्थिति में नहीं थी। मेरे मन और शरीर पर इतना आघात हुआ था कि जिंदा हूँ या मर गई हूँ ये भी समझ नहीं आ रहा था। मगर आज माँ के उस वाक्य का अर्थ समझ आ रहा है।क्या मेरी जिंदगी का ये ग्रहण, मेरा पीछा कभी नहीं छोडेगा… क्या शैलेश के प्यार पर मेरा हक्क नहीं है? या इस हादसे की वजह से मैं जिंदगी भर प्यार से वंचित रहूंगी?
नहीं अब इस ग्रहण को मुझे अपनी जिंदगी से मिटाना ही पडेगा…आज ही मैं शैलेश को सारी बातें बताउंगी..मेरा पूरा विश्वास है कि शैलेश मुझे इस ग्रहण को मिटाने में पूरी मदद करेगा!!”
✍️शीतल प्रधान देशपांडे
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7 Comments on “शीतल प्रधान देशपांडे । (विधा : लघुकथा) (ग्रहण | प्रशंसा पत्र)”
Nicely weitten💜
Very nicely written…👏👏
Thanks 😊
खूपच छान. 👌👌
Thanks 😊
खुप सुंदर लिखाण.
Thanks !