चूप्पके अन्तर कोष्ठ पे फूसफुसाहट !
निश्शब्द: मौन ऊफानें
कशमकश के चढ़ती परवाने
छटपटाहट के चुभते तराने
सफरनामा के उलझनें !
खट्टे अपनपनके चिन्तन सर्ग मे
युँ कहें, कि मूद्दतसे जीते ही आयें.!
लगे जोड़के, ऊहापोह बीच
गहिराईयोंमे जूझते ही आये।
घिरे सवालातोंके, जवाब ढूंढते ही आए !
क्योंकर यादें अहाते मे बैठता है ?
मायूसीके पर्तोंमे उभर आता है
दीवारके खामोशीपे लटक जाता है
आहटोंसे चूपचाप जगाता है
फिर सौ बहानोंमे खूदको छूपा जाता है !!
यादें मिटता नही, जख्म भरता नही
एकाकीपन कभी खामोश होता नही
लम्हे खुशियोंके रँगमे रंगता नही
मनाञ्चलमे तुम्हारी खोज खत्म होता नही
कभी कहानी पूरा बनता नही !
बेधड़क धड़कते दिलमे जख्म फिर भी चूपचाप चुपचाप सुलगता है,
ये किश्त के रिशतेभर उलझके भीगी पलकें चूपके चुपके फफकता है !
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