आज पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मना रहा है ।वर्ष सन 1972 मे संयुक्तराष्ट्र ने 119 राष्ट्रो की अगुवाई में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया ।इस सम्मेलन में एक पृथ्वी का सिद्धांत स्वीकार किया गया और पूरे विश्वके दूषित पर्यावरण पर चिन्ता व्यक्त की गयी।भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसमे हिस्सा लिया और अपना व्याख्यान दिया ।
वर्तमान समय में असंतुलित पर्यावरण पूरे विश्व की गंभीर समस्या है ।घटते वन्य जीव -जन्तु , दुर्लभ पशु-पक्षियों की संख्या मे गिरावट, विश्व की गंभीर समस्या बन चुकी हैं ।प्रदूषण के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है ।दूषित जल , दूषित वायू दूषित मिट्टी के कारण मनुष्य नित नवीन बिमारियों का शिकार हो रहा है ।आज यह स्थिति मात्र और मात्र इंसानी लालच और स्वार्थ के परिणाम स्वरूप ही हुई है ।मनुष्यों ने अंधाधुंध पेड़ो की कटाई शुरू कर दी , जंगल खत्म होते जा रहे हैं, ईट कंक्रीट के जंगल बढ रहे हैं ।अंधाधुंध प्रकृति का दोहन हो रहा है ।बडी-बडी फैक्ट्रिया , कल – कारखाने काला धुआं उगल रहे हैं, इनसे निकलने वाला अवशिष्ट पदार्थ जीवनदायिनी नदियों को खत्म करता रहा और मनुष्य इसे अपनी महान उपलब्धि बताकर विकास की सम्भावनाएं बताता रहा ।आज भी हो रहा है, बन्द कुछ भी नहीं है ।बस , बीच बीच मे धरती को बचाने की झूठी कवायदें होती रहती हैं।प्रतिवर्ष संयुक्तराष्ट्र मे 5 जून से 14जून तक विश्व पर्यावरण दिवस के नाम पर धरती को बचाने की औपचारिकताये निभाई जाती हैं परन्तु अपने अपने जानलेवा रासायनिक उत्सर्जन को कोई भी राष्ट्र
रोकने को तैयार नहीं हैं ।महात्मा गांधी सत्य कहते थे –‘ये धरती हम सबकी आवश्यकता पूरी करती हैं किन्तु एक लालची की लालसा कभी पूरी नही कर सकती । , मनुष्य के लालच और अनदेखी ने धरती की जो दुर्गति की है , हमे इसके दुष्परिणाम भुगतने ही होंगे ।
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