फ़कीरे की कलम से ,
“मैं” मेरा गुरूर और वक़्त
“मैं” के घोड़े पे सवार ,
ज़िद्द थी मेरी,
लिखूंगा हर पन्ना अपनी तकदीर का,
हंस दिया खुदा मेरे गुरुर पर ।
गर वक़्त तेरा है तो,
रोकले उसे दो पल के लिए,
ज़िंदगी को समझ वो तेरी है,
ढूंढ ले इसे दो पल में दो पल के लिए ।
न रूक सका मैं
न रोक सका वक़्त को ,दो पल जीने की लिए ।
अब समझा,भ्रम था मेरा ,
वक़्त मेरा है
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One Comment on “रमेश वधवा ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )”
very nice & meaningful.