वक्त के मारे सभी, वक्त के शागिर्द भी
वक्त ही उस्ताद है, वक्त के सहारे सभी
जो वक्त चलता ही रहे, इंसान फिसलता नहीं
वक्त की एक मार से , फिर संभलता ही नहीं
वक्त मुश्किल हो अगर ,जाने सफर कटता नहीं
वक्त आसां हो मगर, नादान रुकता ही नहीं
फिर चोट वक्त की पड़े, सख्त, जबरजस्त जो
हाथ जोड़कर खड़े, बड़े-बड़े महारथी
पर वक्त संजीदा करें , जो जो वह आगे को बड़े
नादानियां उल्फत सभी ,गहराइयां बनके थमे
परेशानियां कम ना भी हो , तो लड़ने की ताकत बढ़े
घावों को भरने के लिए भी, वक्त ही मलहम बने
खुश मिजाज वह रहे ,जो वक्त से बदल लिए
हमारा वक्त और था, इस जुमले को नहीं घिसे
जो बात सुलझ ना सके, वक्त पर उसे छोड़ दो
सही वक्त पर सही बात कर, हवाओं का रुख मोड़ दो
इतिहास गवाह है ,वही है आगे बढ़ सके
जो वक्त के पाबंद थे , और वक्त ही से लड़ सकें
वक्त से वक्त को पकड़, तभी वह काम आएगा
वक्त हर वक्त एक सा , मुमकिन ना हो पाएगा
बात तय जो है मगर की वक्त खत्म हो जाएगा
कद्र कर ,सहेज कर , जीवन सफल हो जाएगा
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One Comment on “पूनम डागा ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )”
बहुत उम्दा कविता पूनम। एकदम सही कहा वक्त के बारे में। बहुत ही साफ सुधरी भाषा। गर्व की अनुभूति हो रहीं हैं। बहुत बहुत बधाई। 👌👍✅