“सावन के झूले”
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पड़ी हमारे पहले सावन की, आज पहली फुहार।
बदरा गरजे बिजुरिया चमके, आँखे करे सजन का इन्तजार ।।
अबकी बरस, ननदी संग ना झूलूगीं मैं झूले।
सजन तुम आओं, मुझे झुलाओ “सावन के झूले”।।
तुम्हारे कान्थे पर सर रख, तुम संग झूलूगीं ।
प्यार की ऊँची पेंग बढ़ा, घटाओं को छू लूंगी ।।
सखियाँ मेहदी रचायें, जब मिल बैठ तीज-कजरी गायें ।
देख कर प्यार हमारा, वे भी रश्क कर जायें ।।
सजन मेरा प्रहरी सीमा पर, ना हो पायेगा उसका आना ।
कारे बदरा जा, ये संदेशवा उसको पहुँचाना ।।
देसवा की रक्षा करना, तिरंगा ऊँचा लहराना।
घर लौट कर जब आना, जीत का तोहफा लाना।।
तब सजन, तुम मुझे अपनी बाहों में भर लेना ।
मैं झूलूगीं, सजन की बाहों में “सावन के झूले “
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यह मेरी रचना मूल, अप्रकाशित व स्वरचित है
डी. चन्द्रा
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