मनुज योनि श्रेयस्कर है..कहा मुनियों ने संतों ने
बड़े पुण्यों का ये फल है..कहा सब धर्मग्रंथों ने
इसे तुम व्यर्थ मत करना..बुरे कर्मों से हे मानव
पुण्य को क्षीण मत करना..पतित कर्मों से हे मानव ।
सृष्टि में जीव है लाखों.. सभी में जीवन धारा है
सभी जीवों में रूपायित..प्रभु का अंश प्यारा है
मगर इंसान को मन दे.. बनाया उसने न्यारा है
बुद्धि देकर ज्ञान देकर.. मनुज जीवन संवारा है ।
पशु पक्षी में है जीवन.. पेड़ पौधों में भी जीवन
हर एक प्राणी का करना है.. तुम्हें हे मानव संरक्षण
जमीं,जल,जीव,वन,उपवन.. सभी जीवन के पोषक हैं
सभी का संतुलन ही तो.. खुशहाली का उद्घोषक है ।
पंच तत्वों का मिश्रण है.. प्रकृति का खेल ये सारा
सही हो संतुलन इनका.. तभी बनता जीवन प्यारा
संतुलन ये नहीं बिगड़े.. ध्यान ये सबको रखना है
सही प्रर्यावरण शुभ है.. ज्ञान सबको ये रखना है।
विविध फल धान की फसलें..उगाती है सदा सृष्टि
सबको प्रर्याप्त देने को.. प्रकृति ले आती है वृष्टि
क्षुद्र स्वार्थों की खातिर तुम.. नष्ट करना नहीं प्रकृति
प्रकृति संसाधनों का संरक्षण.. सही मानव की है संस्कृति।
किसी को दुःख नहीं पहुंचे.. आचरण ऐसा शुभ रखना
मुझसे सबका ही मंगल हो.. सदा संकल्प ये रखना ।
ईशवाणी है कल्याणी.. सदा ये ध्यान में रखना
धर्मपथ पर चले जीवन..कर्मपथ ऐसा ही रखना ।।
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