हो हल्ला कोहराम मचा है
फिर घंटों से जाम लगा है ।
नाजायज कब्जे हैं जारी
आहत जनता है बेचारी ।
तिल भर रखने जगह नहीं है
रोज जाम की वजह नहीं है ।
जलसे और तमाशे होंगे
नित नए झंडे नारे होंगे ।
या फिर पुलिया टूटी होगी
नेताजी की रैली होगी ।ः
जाम रोज का किस्सा है
हर दिल मे एक गुस्सा है ।
बांध सब्र का टूट रहा है
सारा सिस्टम लूट रहा है ।
भेंट, कमीशन, हिस्सेदारी
सब कानूनों पर है भारी ।
जिसको इसमे अर्थ (?) दिखेगा
तब ही कोई हल निकलेगा ।
जिसके खीसे मे दम होगा
उसका ही तो बिल निकलेगा ।
सबको अपने से मतलब है,
बाकी सरोकार नहीं है,
जनता से लेकर शासन तक,
कोई जिम्मेदार नहीं है ।
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