खोल कर आँखे
उङा दिया है
सपनों के परिंदो को
बंद आंखो के पिंजरो में
जाने कब से फङफङा रहे थे
परिंदे हैं उड़ने दो
आकाशों कि सीमाओ को
इनको बेबाक़ बनकर छूने दो
सपनों को साकार करके
क्यो इनकी हत्या करे?
सपने तो सपने हैं
निराकार असंभव अचेतन
आकाश अवकाश से भी परे
हमे हौसले देने वाले
उस भगवान की तरह
जो दिखते नहीं
पर हैं
हमारे ह्रदय में
आखों में
हम में
हरदम
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