संवादों के माध्यम से लिखी गई एक लघुकथा
(((और ईश्वर ने मिट्टी के पुतले में प्राण डाल दिया))
“कबीर अब तुम्हें दुनिया में भेजा जा रहा है
तुम आकाश से देख सकते हो कि दुनिया कैसे दिखती है।”
“अरे वाह यह दुनिया तो एक गुल्लक की तरह दिखती है”
“आपने दुनिया को गुल्लक के जैसा क्यों बनाया है क्या आप इसमें सिक्के डालते हैं?”
“हां !यह दुनिया एक गुल्लक है इसमें जाने वाला हर एक मनुष्य सिक्का है। यहां कोई सिक्का खोटा नहीं होता!
मैंने हर सिक्के को अपने हाथों से बनाया है। हर सिक्के का एक अपना उद्देश्य होता है और सिक्के को स्वयं तय करना होता है कि वह खुद को कितना मूल्यवान बनाएं!!
मैं तुम्हें दुनिया में भेज रहा हूं ,अब तुम खुद को खोटा बनाओ या मूल्यवान, यह सब कुछ तुम पर निर्भर करता है तुम जल्दी अपनी मां की गोद में जाओगे।”
(अगले पल अपनी मांँ की गोद में था। घर में पुत्र के जन्म की बधाइयां चल रही थी)
“कबीर की मांँ , किस खुशी में मिठाई बांँट रही हो?
“कबीर का स्कूल में दाखिला हो गया है”!
(कुछ वर्ष बाद)
आज किस खुशी में मिठाई बांँटी जा रही है?
” मेरा बेटा बहुत ही उच्च नंबरों से पास हो गया है!
बधाई हो!!
(दिन गुजरते हैं)
“मीनू की मां यह मिठाई खा लो कबीर का अच्छे यूनिवर्सिटी में दाखिला हो गया है!”
(कुछ वर्ष बाद)
कबीर को बहुत ही अच्छी कंपनी में जॉब मिल गई है!
आज किस खुशी में मिठाई बांँट रही हो?
“हमने कबीर का ब्याह तय कर लिया है । लड़की के माता पिता नहीं है मगर वो सुंदर सुशील लड़की है।”
सुना है तुम लोगों ने दहेज भी नहीं लिया है! तुम्हारा बेटा इतना अच्छा जॉब करता है ।
इतना अच्छा कमाता है।उसे तो एक से बढ़कर एक अच्छे घराने की लड़कियां मिलती।
हां !सही कह रही हो , मगर मेरी कोई सुने तब ना । हमें भी लड़की की शादी करनी है। उसमे भी खर्च करना होगा।
मगर यह लड़की भी अच्छी है।
ठीक है भाई। जैसी तुम लोगों की मर्जी!!
अरे कबीर की मांँ सुना है कबीर जिस कंपनी में कार्य करता था उस कंपनी का दिवालिया हो रहा है?!!
हां !कंपनी घाटे में चल रही है।। मगर कंपनी का मालिक बड़ा अरबपति है।
कंपनी के मालिक की लड़की कबीर के सामने विवाह का प्रस्ताव रखती है।
कबीर यह बात अपने घर में बताता है।
घर के लोग मशवरा करके बोलते हैं!
” तुम्हें यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेनी चाहिए क्योंकि हमारी आर्थिक तंगी भी दूर हो जाएगी। और लड़की की शादी भी करनी है । हर कोई तुम्हारी तरह नहीं की दहेज ना ले।”
“मगर उस लड़की का क्या जिससे पहले ही विवाह तय हो चुका है?”
हम उन्हें मना कर देंगे।
ऐसे तो तुम्हें जॉब करके तरक्की करने में सालों लग जाएंगे लेकिन तुम्हें एक पल में धनवान बनने का मौका मिल रहा है इस मौके को गंवाना मूर्खता है!
मगर वो एक ‘विलफुल डिफॉल्टर ‘ है।
तो क्या हुआ ? उसकी लड़की ने तो कुछ नहीं किया।
(कबीर मन ही मन सोचता है , किया तो उस लड़की ने भी नहीं कुछ!! मगर कुछ बोलता नहीं है))
अर्थात् मैं स्वयं को बेच दूं। धनवान दूल्हे खरीद सकते हैं।
कबीर इस बारे में बहुत सोचता है।
नहीं मैं खुद को खोटा सिक्का नहीं बनाऊंगा मैं उस लड़की से ही ब्याह करूंगा जिससे मैंने वादा किया है। मैं खुद को बेचूंगा नहीं।
रात को जब कबीर सो जाता है तो वह एक दिव्य आवाज सुनकर उठता है!
कबीर आज तुमने खुद को अशर्फी बनाई जो सोने की होती है ।इस प्रकार हर मनुष्य के पास एक मौका होता है कि वह खुद को कितना मूल्यवान बनाता है।।
सुबह कबीर एक निश्चय के साथ उठता है।
वो ख़ुद को बहुत तरो ताज़ा और तनाव रहित महसूस करता है।।
हिना शाइस्ता✍️
स्वरचित, अप्रकाशित
सर्वाधिकार सुरक्षित
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2 Comments on “हिना शाइस्ता। (विधा : लघु-कथा) (गुल्लक | सम्मान-पत्र)”
Very Interesting and Motivational story!
Shukriya behad🙂