इतने गौर से क्या देख रही हो?
माँ, वो देखो ना कितना सुंदर है।
गगनचुंबी इमारतों के बीच से झांकता,
सतरंगी सपना, वो इंद्रधनुष है।
क्या ये रोज़ दिखता है खिड़की से?
नहीं, इसके आने की आहट होती है।
आप भी पहेलियाँ बुझा रही हो मां,
नहीं, तुझे हकीकत से रुबरु करा रही हूँ।
जब आकाश गहरा, स्याह होता है,
जब बादल गुस्से से गरजता है,
जब सूरज नज़र नहीं आता है,
जब मेघ गरज, बरस जाता है।
जब वो खूब बरस लेता है,
जब वो खूब गरज लेता है,
जब काला स्याह हल्का होता है,
तब इंद्रधनुष दस्तक देता है।
जब कभी निराशा से घिर जाओ,
असमंजस में तुम पड़ जाओ।
जब लगे डराने अपना ही मन,
नहीं छोड़ना आशा का दामन।
कहीं दूर ही सही, सजा होगा,
तुम्हारे सपनों का आकाश।
और उसपर इंद्रधनुष सतरंगी,
देता दस्तक इक आशा की।
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1 Comments on “सोनिया सेठी (UBI इंद्रधनुष प्रतियोगिता | वरिष्ठ कवि )”
अति सुंदर