कौन जी सका वक़्त के मुताबिक ये जहान
हसरतें कब सबकी पूरी हुई यहां
वक़्त ने बदली सबकी दिशा
वक़्त के आगे बेबस हुआ हर इंसान
वक़्त को मुट्ठी में जब करना चाह क़ैद
फिसल गया वो हाथों से रेत की तरह
वक़्त की कीमत कौन कर सका अदा
महान सिकंदर भी खाली हाथ ही गया गया
वक़्त का परींदा कब यहां रुका
बादलों के पार वो उड़ता चला ।
ज्ञानी है वक़्त कुछ न कुछ सबक पढ़ाता है
कभी प्यार से कभी ठोकर दे कर सिखाता है
वक़्त हमको सही मायने में जीना सिखाता है
कभी हंसता है ,कभी रुला जाता है
वक़्त का हाथ थाम चलना सीख लो गर।
वक़्त ही मंज़िल तक पहुंचाता है।
आरती मित्तल
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