रूहें देखी हैं कभी ,
मिले हो कभी रूहों से ,
सोचा है कभी इनकी बातों में मुद्दा क्या होता है,
सब्जेक्ट क्या और प्रेडीकेट क्या होता है ?
मकान कैसे होते हैं इनके,
धुंआ तो उठता नहीं रसोई से इनकी ..
फिर खाना कैसे पकता है ,
इनके यहाँ भी डेमोक्रेसी होती है क्या ,
बाज़ार में मोल तोल करते हैं तो दाम कैसे चुकाते हैं ,
अगर दो रूहों में बगावत हो जाए तो खून किसका बहते हैं ?
इनकी उम्र भी तो सिमित होगी ..
फिर इनकी सेज़ कैसे सजती है ..मातम कैसे मनता है ,
कोई रूह अगर बीमार हो जाए तो हकीम रूह भी होती है क्या ?
क्या रूहें भी माँ बनती हैं ? किसी रूह को जनम देती हैं क्या ?
ये रूहें हम इंसानो से डरती हैं क्या ,
वहां भी सरहदें होती होंगी शायद ,
पर क्या इतनी गहरी जितनी हम इंसानो ने खींची है..
कई सवाल हैं ज़हन में , तुम्ही बता दो ..
रूहें देखी हैं तुमने ,
मिले हो कभी रूहों से ,
सोचा है इनकी बातों में मुद्दा क्या होता है ?
– मैहर
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