रीता बधवार (सागर किनारे प्रतियोगिता | सहभागिता प्रमाण पत्र )
अपने अालेख का आरंभ मैं रामचरितमानस के इस सुंदर दोहे से करना चाहती हूँ….. “बाँध्यो जलनिधि नीरनिधि जलधि सिंधु वारीस, सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि
अपने अालेख का आरंभ मैं रामचरितमानस के इस सुंदर दोहे से करना चाहती हूँ….. “बाँध्यो जलनिधि नीरनिधि जलधि सिंधु वारीस, सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि
सागर किनारे बैठी मैं सोच रही ये जीवन क्या है!!!? गहरा सागर ही तो है, इसकी अथाह अनंत गहराई की थाह कौन लगा पाया है?
समुद्र किनारे बैढ़ कर पूरे हुए मन में उठे कई सवाल , लहरों सा जीवन है अपना हर पल हिचकोले खाये , कभी उठे इतना
लहरों का मुकद्दर है , सागर में जा समाना, फिर साहिल से टकराकर, पड़ता है लौट जाना। ठहरा नहीं कभी भी, चाहे कैसी भी हो
आज ढूँढती हूं वो गुज़रे लम्हें तेरे मेरे, लहरों के उस पार, सागर किनारे। वो पीले फूलों की चादर पर साथ बैठना, मेरे समय पर
गुज़र रहा है जीवन जैसे, किसी सुंदर सागर किनारे । बने पड़े हैं जहां अतीत के, निशान अनगिनत कई सारे। सामने भावी संभावनाओं की, अथाह
सागर को क्या पता,किनारे की दर्द! टूटते हुए लहरों के कद, सरहद! कितना दर्द दफन हुए हैं किनारे! टुट कर लहरें जो बिखर जाते सारे।
सागर है कितना गहरा… हमारे मन जैसा ही कुछ-२ थाह नहीं आसान जिसकी मन में चलती रहती है धुक-२ जो भी गहरे पानी पैठता उत्ताल
क्या मैं हूँ क्या तुम हो और क्या ये सागर का किनारा है नदियां और सागर की भांति जब तक अधूरा प्यार हमारा है पास
इस बरसते हुए मौसम में सागर की लहरों के उठते उफान में जैसे हर लफ्ज़ मचल उठा हो तुम्हे अपने करीब पाकर लहरों के किनारे
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