Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

निशा टंडन। (विधा : कविता) (कागज़ की कश्ती | सम्मान पत्र)

मासूमियत भरा था वो बचपन हमारा
खेल खिलौनों का नहीं था हमको सहारा
बस आसमान ऊपर और नीचे धरा थी
और फ़िक्र नाम की ना कोई बला थी

वक्त यूँ ही हम अपना गुज़र किया करते थे
बिन मौसम हो जाए बारिश ये दुआ करते थे
निकाल कर रंगबिरंगे काग़ज़ के टुकड़े
फिर ख़ूबसूरत कश्तियाँ बना लिया करते थे

यार दोस्तों को करके फिर हम इकट्ठा
हँसी – ठिठोली की महफ़िलें जमाते
ना फ़िक्र जीत की ना हारने का डर था
बस पानी के गड्ढों में अपनी कश्तियाँ तैराते

पानी में तैरते हुए जब वो ज़रा इठलाती
देख कर उनको मन में उमंगें उठ जाती
दिल में उदासी का आलम हो जाता
जब कोई हिचकोले खाते हुए डूब जाती

ना जज़्बा है कोई ना कोई ज़रूरत
बच्चों को ये सब कहाँ अब पसंद है
बस हमारे बचपन के वो हसीन लम्हे
आज हमारी यादों के पिटारे में बंद हैं

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

Leave a Comment

×

Hello!

Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com

× How can I help you?