आज फिर झूम कर बदरा छाए हैं ,
सन सन सनसनाती मदमस्त हवाएँ हैं ..!
मन का मयूर नाचने को बेताब है ,
यह सावन के आने की है आहट, या मेरे बाबरे मन का ही कोई ख़्वाब है ..?
नहीं शायद ये बैरी सावन की ही है पुकार,
विचलित सा दिख रहा है वो,कर रहा है गुहार ..!!
मानो कह रहा हो वो ..
जब मैं नहीं आता तो तुम सब व्यथित हो ,
हर तरह की जुगत लगाते हो ..!
और जब आ जाऊँ तो निपट उपेक्षा कर मेरी बेसुध बेपनाह यत्र तत्र सर्वत्र बहाते हो ..!!
सोचो ज़रा अगर मैं भी रूठ जाऊँ तो ..
और रूठ कर फिर वापस ही ना आऊँ तो..?
क्या मेरे बिना तुम अपने अस्तित्व की कल्पना भी कर पाओगे ..?
अपने बच्चों का भविष्य उजाड़ कर कैसे झूलोगे झूला और कैसे मल्हार गाओगे ?
अभी भी समय है दोस्तों..
मेरी एक एक बूँद को सहेजना होगा तुम्हें ,
बादलों से लेकर जो देता हूँ,उसे धरती को वापस देना होगा तुम्हें ..!
मेरे जल का भूमि संचयन करोगे तभी ख़ुशगवार रह पाएँगे तुम्हारे भविष्य के लम्हे ..!!
और यदि तुम यूँ ही मेरी सुधि बिसराते रहे और व्यर्थ ही नालियों में बहाते रहे ,
तो वोह दिन दूर नहीं जब तुम्हारे प्यासे कंठ अतृप्त ही रह जाएँगे ..!
बंजर हो जाएगी तुम्हारी धरती माँ,
और तुम्हारे बच्चे मेरी एक एक बूँद पाने को तरस जाएँगे ..!
और शायद इस अन्न जल की जंग में हम अपने ही अपनो से भिड़ जाएँगे ..!!
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